मशीनीयुग के मायाजाल से निकल कर मशीनो के बीच से ही मसीहा ढूँढना होगा
टिंडर पर क्या बोलू ! टिंडर का नाम बदल कर ऑनलाइन बुकिंग फॉर फ्री सेक्स ओनली फॉर सुन्दर लोग होता तो बेहतर होता।
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जब इंसान हद से ज्यादा मशीनों पर भरोसा करने लगा तो मशीनों की ताकत बढ़नी लाजमी थी। मशीनों ने इंसानो को धोखा देकर और अपनी ताकत का उपयोग कर इंसानो पर ही आक्रमण कर दिया और उन्हें तबाह करके धरती पर राज करने लगे। उन्हें ऊर्जा सूर्य से मिलती थी।लेकिन बाद में कुदरत को ये पसंद नहीं आया और अचानक से सूर्य हमेशा के लिए अस्त हो गया। जब ऊर्जा के लिए कोई स्रोत नहीं रहा तो मशीनों ने इंसानो को अपना हथियार बनाया और सारे के सारे इंसानो को ऊर्जा स्रोत में रख कर उनसे ऊर्जा प्राप्त करने लगे और एक मायाजाल का निर्माण किया जिसमें इंसानो को अनैसर्गिक रूप में रखा गया। अब सारे इंसान यहाँ अपने अनैसर्गिक रूप में थे और वास्तविक रूप में ‘मायाजाल’ नामक एक कंप्यूटर प्रोग्राम में कैद थे।
ये कहानी कही सुनी सुनाई लगती है न !जी हां यह कहानी हॉलीवुड फिल्म ‘द मैट्रिक्स ‘ की कहानी है।
अगर आप शाहरुख़ और सलमान के फैन है तो आपको यह फिल्म एक बेवकूफी ज्यादा लगेगी। मुझे भी यह फिल्म एक काल्पनिक फिल्म ज्यादा लगी थी।लेकिन उम्र के साथ साथ मुझे एहसास हुआ की यह फिल्म सही संदेश दे रही थी।
उम्र बढ़ी तो पता चला की मेरे साथ साथ पृथ्वी के 70% लोग इस मायाजाल के शिकार है।मायाजाल को जब लगा की उसका बिज़नेस बढ़ रहा है तो उसने कुछ ऐसी चीजे परोसी गयी जो लोगो को बहुत पसंद आई और लोगो को उसका नशा हो गया। गूगल, फेसबुक, व्हाट्सएप्प, ट्विटर, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, टिंडर ,गेम्स ने एक आम आदमी को खास आदमी जैसी ताकत दे दी । आज कल तो खाना पानी से लेकर सोने जागने से लेकर टट्टी तक के अपडेट फेसबुक और व्हाट्सप्प पर दिख जाते है।टिंडर पर क्या बोलू ! टिंडर का नाम बदल कर ऑनलाइन बुकिंग फॉर फ्री सेक्स ओनली फॉर सुन्दर लोग होता तो बेहतर होता।आप कोसो दूर बैठे लोगो से संपर्क कर सकते है ,उन्हें देख सकते थे , वह भी बिना पैसे खर्च किए।लेकिन लोगो को पता ही नहीं चला की यह खूबसूरत एप्स मशीनों द्वारा रचित एक मायाजाल है।
एक इंसान की लम्बाई 4 फीट से लेकर 7 फीट की होती है। लेकिन इन इंसानों को जज करने के लिए हम 5-15 इंच की मशीन पर भरोसा कर बैठे है। हम इंसान को इस मशीन में देखते है या मशीन की मदद से उससे बात करते है और तय कर लेते है की वह इंसान हमारा दोस्त है या जीवनसाथी बनने लायक है या नहीं। यानी हम इंसान को वास्तविक रूप में उसके पूरे अंश को देखे बिना जज करते है और फिर उसी के आधार पे अपना इमोशन जाहिर करते है।
पहले किसी व्यक्ति के बारे में जानकारी लेने के लिए आपको उसके घर जाना पड़ता था या उसके पडोसी से जा कर उसके बारे जानकारी इकठा करनी होती थी। लेकिन आज के मशीनी कलयुग में पल झपकते ही पता चल जाता है की फलाना कहा घूम रहा है ,क्या खा रहा है, किसके साथ है, कब तक साथ है। इसका एक फायदा तो साफ़ साफ़ हमारे पेट के आकार पर दिखता है।आश्चर्य तो तब होता है जब पेट के इस आकार को सही आकार देने लिए हम फिर से एक ब़ार मशीन के शरण में जाते है।
जब बात मशीन की हो रही हो तो सबसे ताकतवर मशीन ‘मशीनगन’ की बात ना की जाए तो मेरी खैर नहीं है। मशीनगन एक ऐसा राक्षस है जो अपने जन्मकर्ता की जान लेने के लिए बना है।लेकिन मशीनगन हम से पलट कर यह सवाल भी कर सकता है कि , अगर मैं राक्षस हूँ तो तुम क्या हो?तुमने तो मुझे जान लेने के लिए बनाया था , अब जब में अपनी ड्यूटी पूरी कर रहा हूँ तो तुम मुझ से कैसे शिकायद कर सकते हो?माना की मैं राक्षस हूँ लेकिन तब जब तुम खुद को ब्रह्मराक्षस मानने को तैयार हो।
इस तरह हमारी दुनिया का कोना कोना इस मायाजाल का शिकार हो चुका है लेकिन इसी दुनिया के बीच एक शहर था ज़िओन, जहाँ के लोग इस मायाजाल को समझ गए थे और फिर अपनी दुनिया के लोगो को बचाने के लिए वो एकजुट होने लगे।उन्हें पता चल गया था की उनकी जिंदगी उनके द्वारा बनाई गई मशीनो की ही गुलाम हो गई है।
मैं भी उसी ज़िओन शहर से था।हमें पता चल चुका था की मशीन और सॉफ्टवेयर प्रोग्राम हमारे सबसे बड़े दुश्मन है लेकिन हमें एहसास था इनके बिना हमारी तरक्की भी संभव नहीं है। फिर हमनें सोचा की फिर से एक ऐसा प्रोग्राम का आविष्कार किया जाए जो असली और नकली प्रोग्राम की पहचान करे। लेकिन हम असफल हो गए। आप हम से ज्यादा समझदार है और आपके पास संसाधन की भी कमी नहीं है। इसलिए आपसे दरखास्त है की आप लोग अगर मशीनों के बिना रह नहीं सकते तो मशीनों के बीच से ही मसीहा ढूँढ ले।हम ज़िओन वासी केवल आप समझदार लोगो को रास्ता दिखा सकते है लेकिन मसीहा तो आपको ही ढूँढना होगा।