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आसन भाषा में समझिए इच्छा मृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बड़ी बातें

पैसिव यूथेनेसिया के तहत गंभीर रूप से बीमार मरीज की जान बचाने के लिए कुछ नहीं किया जाता है।

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पैसिव यूथेनेसिया के तहत गंभीर रूप से बीमार मरीज की जान बचाने के लिए कुछ नहीं किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को असाध्य रोग से ग्रसित लोगों को सशर्त इच्छा मृत्यु की मंजूरी देने का ऐतिहासिक फैसला दिया। सर्वोच्‍च न्‍यायालय का यह फैसला एक व्‍यक्ति की इच्‍छा मृत्‍यु की वसीयत पर सुनवाई के दौरान सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव यूथेनेसिया को तो कुछ शर्तों के साथ इजाजत दी, साथ ही कोर्ट ने लिविंग विल को भी मंजूरी दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि कोई व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार है और उसके इलाज की संभावना नहीं है तो वह (लिविंग विल) इच्छा मृत्यु लिख सकता है। कोर्ट ने ‘लिविंग विल’ और इच्छा मृत्यु के इस नए प्रावधान का दुरुपयोग रोकने के लिए शर्तें भी रखी हैं।

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उन लोगों और उनके परिजनों के लिए एक बड़ी राहत के तौर पर देखा जा रहा है, जो जिंदा लाश की तरह महीनों अस्पताल में पड़े-पड़े मौत का इंतजार करते रहते हैं, बिल बढ़ता रहता है और बचने की कोई संभावना नहीं होती।

 

लिविंग विल (इच्छा मृत्यु वसीयत )क्या होता है ?

लिविंग विल वह दस्तावेज होता है, जिसमें एक जीवित व्यक्ति पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या कुछ ना कह पाने की स्थिति में उसका इलाज किस तरह से किया जाना चाहिए। व्यक्ति को लिविंग विल को लेकर यह बताना होगा कि किस स्थिति में मेडिकल ट्रीटमेंट बंद किया जाए।

पैसिव यूथेनेसिया क्या होता है ?

पैसिव यूथेनेसिया के तहत गंभीर रूप से बीमार मरीज की जान बचाने के लिए कुछ नहीं किया जाता है।उदाहरण के लिए पैसिव यूथेनेसिया के तहत कोमा के मरीज को मृत्यु तक पहुंचाने के लिए सभी प्रकार के मेडिकल ट्रीटमेंट पर रोक लगा दी जाएगी। इससे मरीज के मरने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

 

आइए जानते हैं कोर्ट के फैसले की महत्वपूर्ण बातें-  

  • सुप्रीम कोर्ट नेपैसिव यूथेनेसिया को तो कुछ शर्तों के साथ इजाजत दी, साथ ही कोर्ट ने लिविंग विल को भी मंजूरी दी। सुप्रीम कोर्ट ने एक्टिव यूथेनेशिया (इसके तहत मरीज को मारने के लिए इंजेक्शन का प्रयोग किया जाता है। ) को मंजूरी नहीं दी है।
  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अगर कोई मरीज स्वयं होश में हो, मृत्यु की इच्छा जताए और लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटवाने के लिए तैयार हो तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर और परिजनों को उसका फैसला मानना पड़ेगा।
  • दूसरी स्थिति ये हो सकती है कि मरीज होश में ना हो लेकिन उसने पहले ही ऐसी परिस्थिति के लिए इच्छामृत्यु की वसीयत कर रखी हो।ऐसी स्थिति में उसके लिविंग विल को आधार मानते हुए मरीज का लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है ।
  • तीसरी स्थिति ये संभव है कि मरीज न तो स्वयं होश में हो और ना ही उसने इच्छामृत्यु की वसीयत कर रखी हो। तब डॉक्टर और परिजन तय प्रक्रिया के तहत मरीज के लिए पैसिव यूथेनेसिया की मांग कर सकते हैं।
  • अगर किसी व्यक्ति ने एक से ज्यादा लिविंग विल बनाया है तो उसका आखिरी विल मान्य होगी।
  • विल दो गवाहों की मौजूदगी में बनेगा। इसे फर्स्टक्लास ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट प्रमाणित करेगा। इसकी 4 कॉपी बनेंगी। एक परिवार के पास और बाकी ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट, डिस्ट्रिक्ट जज और नगर निगम या नगर परिषद या नगर पंचायत या ग्राम पंचायत के पास रहेगी।
  • इच्छामृत्यु के दुरुपयोग रोकने के लिए कोर्ट ने शर्तें भी रखी हैं। किसी ऐसे व्यक्ति की लाइफ विल को लेकर पूरी छानबीन होगी, जिसे संपत्ति या विरासत में लाभ होने वाला हो। यह जांच राज्य सरकार स्थानीय प्रशासन द्वारा कराएगी।
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