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गुजरात की राजनीती कमजोर बहुमत से चुनी सरकार कैसे काम करती है उसका नमूना पेश कर रही है

भाजपा ने गुजरात चुनाव जीत कर भले ही विजय रूपाणी के अगवाई में अपनी सरकार बना ली हो लेकिन भाजपा के लिए आगे की राह आसान नहीं दिख रही है। अभी भाजपा 22 सालों में पहली बार 100 से कम सीटों पर सिमटने के झटके से उबरी नहीं थी कि सरकार बनने के महज तीन दिन के भीतर ही पार्टी की अंदरूनी कलह बाहर आने लगी है । गुजरात बीजेपी के नंबर-2 नेता और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए केंद्रीय नेतृत्व  को चेतावनी भरी शब्दों में कह दिया की वह अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता नहीं करेंगे । यानी अगर उन्हें मनचाहा मंत्रालय नहीं मिला तो वह आत्मसम्मान में ठेस पहुंचाए जाने की दलील दे कर इस्तीफा दे सकते हैं ।

विजय रूपाणी की पिछली सरकार में नितिन पटेल को उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ वित्त और शहरी विकास मंत्रालय की बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन इस बार उन्हें सड़क एवं निर्माण, स्वास्थ्य, मेडिकल शिक्षा, नर्मदा, कल्पसार एवं कैपिटल परियोजना जैसे विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई है । पटेल इस बात से नाखुश दिखाई पड़ रहे थे कि उनसे शहरी विकास, वित्त, पेट्रोकेमिकल्स, टाउन प्लानिंग जैसे विभाग ले लिए गए है जो पिछली सरकार में उनके पास थे। वित्त एवं पेट्रोरसायन विभाग सौरभ पटेल को दिया गया है, जिन्हें विजय रूपानी की पिछली सरकार में जगह नहीं दी गई थी। वहीं रूपानी ने शहरी विकास विभाग अपने पास रखा है।

नितिन पटेल की नाराजगी पर पाटीदार नेता हार्दिक पटेल आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। हार्दिक ने कहा, “अगर गुजरात के उपमुख्‍यमंत्री नितिन पटेल 10 अन्‍य विधायकों के साथ भाजपा छोड़ने के लिए तैयार हो जाएं, तो हम उन्‍हें कांग्रेस पार्टी में अच्‍छा पद दिलाने की बात करेंगे अगर बीजेपी उनका सम्मान नहीं कर रही है तो उन्हें पार्टी छोड़ देनी चाहिए। “

पाटीदार आरक्षण आंदोलन के गढ़ मेहसाणा से जीतकर आए नितिन पटेल बीजेपी के एक बड़े पाटीदार नेता है । उन्हें उम्मीद थी की इस बार उनका प्रमोशन कर गृह मंत्री भी बनाया जा सकता है लेकिन नई सरकार में उनका ओहदा और भी नीचा कर दिया गया । पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के इस्तीफे के बाद भी नितिन पटेल को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा जोरों पर थी, लेकिन ऐनवक्त पर उनको उपमुख्यमंत्री की जवाबदारी सौंपी गई तथा सीएम का पद विजय रुपाणी को मिल गया था ।

यह सवाल उठना लाज़मी है की पिछली बार मुख्यमंत्री पद नहीं मिलने पर बगावती बिगुल नहीं फूकनें वाले नितिन पटेल वित्त और शहरी विकास मंत्रालय नहीं मिलने पर इतना नाराज़ कैसे हो गए की उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के गृहराज्य में आक्रामक रुख अपनाते हुए सरकार के खिलाफ बगावती बिगुल फूंक दिया ? इस सवाल का जवाब जानने के लिए गुजरात विधानसभा का दलीय समीकरण जानना जरूरी है । गुजरात में कुल 182 सीट में से बीजेपी को 99 (पिछली बार 115) सीटें मिलीं, वहीं कांग्रेस को 77 (पिछली बार 61) सीटें मिलीं। निर्दलीयों ने तीन, भारतीय ट्रायबल पार्टी को दो व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को एक सीट मिली है। विधानसभा में बहुमत के लिए 92 विधायक का समर्थन होना जरुरी है । इसलिए बीजेपी संख्याबल के हिसाब से बाउंड्री लाइन से सिर्फ 7 कदम आगे है । वहीं पिछली बार बीजेपी बहुमत के संख्याबल से बहुत आगे थी । नितिन पटेल इस बात से भलीभांति अवगत है की इस बार मोल भाव करने की बारी उनकी है । उम्मीद जताई जा रही है की नितिन पटेल ने जो दांव खेला है वह इसमें सफल होंगे और उन्हें वित्त या गृह मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी जाएगी । इस से शायद गुजरात की जनता और गुजरात के विकास पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वे पहले भी ऐसे विभाग की जिम्मेदारी उठा चुके है । लेकिन भविष्य में इसकी संभावना अधिक है की कमजोर जनादेश से चुनी गई रुपानी सरकार को आए दिन अपने ही लोगो से धमकियाँ मिलती रहेंगी । इसका नुकसान सबसे ज्यादा गुजरात के विकास के ऊपर होगा जो बीजेपी की आपसी खींचतान का शिकार होगी ।

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