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मुझे उस दिन ऐहसास हुआ की मानवता आज भी जिंदा है

Young Men helping Old Aged Men पाठकों की तरफ से समाचार 

मुझे शहर में आए हुए कई दिन हो गए थे लेकिन अभी भी मैं अकेला महसूस कर रहा था। यह मेरी अकेले की कहानी नहीं थी। मैं अपने आस पास के लोगो में अकेलापन देख सकता था। मैं जब भी घर से कोचिंग के लिए निकलता तो रास्ते में जाने पहचाने चेहरे तो दिखते थे लेकिन कोई ऐसा नही दिखता था जिससे दो बातें कर सकू। सोचता था की शायद यह बड़े शहरों की विशेषताएं होती होगी।मुझे ऐसा लगता था कि जैसे यहां पर मानवता मर ही चुकी है। 

आज मैं रोज की ही तरह अपने समय पर कोचिंग के लिए जा रहा था और और रोज की ही तरह उस दिन भी मेरा दिमाग किताब के ज्ञान की जगह बड़े शहर के लोगो के दिमाग के केमिकल लोचे के विज्ञान के बारे में सोच रहा था। मैं बस स्टॉप पर खड़ा था उसी समय एक 60-6 5 साल के दिव्यांग बुजुर्ग दादा वहां पहुंचे।उन्होंने वहां खड़े एक लड़के से पूछा,“बेटा सिलिकॉन सिटी की बस कब आएगी ?” उस लड़के के जबाब ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया।उसने बड़े तल्ख़ शब्दों में कहा ,“क्या मैं आपको कंडक्टर दिखता हूँ ?”

मैं पीछे खड़ा यह सुन रहा था । मैंने दादा जी को कहा की बस कुछ मिनटों में आ जाएगी। हमने बातचीत शुरू की। शायद उस दिन पहली बार शहर में किसी से बातचीत कर सुकून महसूस हो रहा था। मैं बातचीत तो कर रहा था लेकिन मेरी चिंता यह थी की वे बस में चढ़ कैसे पाएंगे। मुझे तो आएदिन बस में चढ़ने के लिए धक्का-मुक्की करनी होती थी । बस आई लेकिन कोई भी बस में चढ़ नहीं रहा था। मैं आश्चर्यचकित था। वह  लड़का जिसने कुछ देर पहले दादाजी के साथ अभद्रता से बात की उसने आकर बोला  “दादा जी आप पहले बस में प्रवेश करे।” एक और लड़का आया और उसने दादाजी को बस में चढ़ने में मेरी मदद की। बस में बिल्कुल जगह नहीं थी मैंने अंकल को सहारा देने क फैसला किया। तभी पीछे से आवाज़ आई ,” चाचाजी आप यहाँ बैठ जाइये।” इस घटना ने मुझे एक बात तो सिखा दी , मानवता मरी नहीं है वह सिर्फ छुप गई है। जरूरत है तो सिर्फ उसे ढूँढने की ।

 

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