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शिवसेना-मनसे का कांग्रेस प्रेम अपने प्रेमी को सताने के लिए किया गया एक दिखावटी प्रेम ज्यादा लगता है

2014 आम चुनाव से पहले महाराष्ट्र में बीजेपी जूनियर साथी और लेकिन मोदी-शाह युग में शिवसेना को उतनी इज्ज़त नहीं मिल रही है जो अटल-आडवाणी के समय मिलती थी।

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2014 आम चुनाव से पहले महाराष्ट्र में बीजेपी जूनियर साथी और लेकिन मोदी-शाह युग में शिवसेना को उतनी इज्ज़त नहीं मिल रही है जो अटल-आडवाणी के समय मिलती थी।

बात 2012 राष्ट्रपति चुनाव की है प्रणब मुखर्जी यूपीए के उम्मीदवार थे और पीए संगमा को प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने समर्थन देने की घोषणा की थी।सबसे पुराने सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना ने 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करके भाजपा के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी थी।प्रणब मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि सोनिया गांधी के मना करने के बावजूद भी उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के सिलसिले में समर्थन जुटाने जब मुंबई गए तो शिवसेना के दिवंगत नेता बाल ठाकरे से उनके घर पर मुलाकात की थी। पूर्व राष्ट्रपति लिखा,

 मैंने सोनिया जी की नामंजूरी के बावजूद ठाकरे जी से मिलने का निर्णय किया, क्योंकि मुझे लगा कि जिस व्यक्ति ने मेरी उम्मीदवारी का समर्थन करने में अपने पारंपरिक गठबंधन भागीदार का साथ छोड़ दिया हो, उसे अपमानित महसूस नहीं करना चाहिए।

ये कहानी साफ़ करती है कि शिवसेना और कांग्रेस के बीच संबंध 2012 तक बिल्कुल मधुर नहीं थे । कांग्रेस को लगता है कि शिवसेना की हिंदुत्व की छवि उसकी राजनीति में पलीता लगा सकती है।

कांग्रेस 2012 में केंद्र और महाराष्ट्र में मजबूत थी और दोनों जगह उसकी सरकार थी और उसे शिवसेना की कोई भी जरूरत नहीं थी। लेकिन 2014 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस और शिवसेना केंद्र में कमजोर हो गई और रही सही कसर उसी साल हुए महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव ने कर दिया। मोदी लहर पर सवार बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफल रही और तत्कालीन महाराष्ट्र के अध्यक्ष देवेंद्र फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री बने। शिवसेना को यह बात नागवार गुजरी । केंद्र और राज्य दोनों सरकारों में शामिल  होने के बाबजूद शिवसेना को जब भी सरकार को घेरने का मौका मिलता है तो वह मौका पर चौका मारने से पीछे नहीं हटती। यह कहना गलत नहीं होगा की  बीजेपी के साथ सत्ता में रहते हुए शिवसेना राज्य में विपक्ष की भी भूमिका निभा रही है, चाहे वो किसानों का मुद्दा हो या मुंबई में बाढ़ का, शिवसेना बीजेपी और फडणवीस सरकार पर निशाना साधने में कोताही नहीं करती है।

कभी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की खिल्ली उड़ाने वाले शिवसेना और मनसे नेताओं के बोल अब बदल गए हैं।हाल ही में शिवसेना नेता संजय राउत ने टीवी पर जारी एक बहस के दौरान बीजेपी  पर तंज कहते हुए  कहा था कि ,’ मोदी लहर अब फीकी पड़ गई है।’ राहुल गाँधी के बारे में पूछे जाने पर राउत ने कहा की ,’ गुजरात में राहुल गांधी को सुनने के लिए भारी भीड़ उमड़ रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष अब देश का नेतृत्व करने के योग्य हो गए हैं ।राहुल को  ‘पप्पू’ कहकर पुकारा जाना गलत है।’

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना(मनसे) के नेता राज ठाकरे जिन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी का यह कहकर मजाक उड़ाया कि उनमें ‘विश्वास के कमी’ है के भी सुर आज कल बदले हुए लग रहे है ।राज ठाकरे ने एक कार्यक्रम में कहा कि, ‘जिस व्यक्ति को बीजेपी पप्पू-पप्पू कहती रही, आज वो गुजरात में झप्पू बन गया है। राहुल के रैली में लोगो की भीड़ को देख कर प्रधानमंत्री डर गए है इसलिए वे आठ-नौ बार गुजरात चले गए है।’

बीजेपी-शिवसेना का रिश्ता फिल्म 3 इडियट्‌स  के इस डायलाग की याद दिलाता है ,’दोस्त  जब फैल  हो जाए तो  दुःख होता है लेकिन जब दोस्त  फर्स्ट आ जाये तो और भी ज्यादा दुःख होता है।’ बीजेपी और शिवसेना 25 साल से एक साथ और दोनों की विचारधारा भी मिलती है।2014 आम चुनाव से पहले महाराष्ट्र में बीजेपी जूनियर साथी और लेकिन मोदी-शाह युग में शिवसेना को उतनी इज्ज़त नहीं मिल रही है जो अटल-आडवाणी के समय मिलती थी। शिवसेना और बीजेपी में एक डील थी की महाराष्ट्र शिवसेना संभालेगी और देश बीजेपी संभालेगी ताकि हिंदू मतो का ध्रुवीकरण न हो ।लेकिन 2014 में मिली भारी जीत ने बीजेपी का मनोबल बढाया और बीजेपी ने राज्य में सरकार बनाने का सपना देखा और सच भी कर भी दिखाया। यही बात शिवसेना को नागवार गुजर रही है।

कांग्रेस बीजेपी और शिवसेना के बीच जारी तनाव का फायदा उठाने के मूड में नहीं है।कांग्रेस के लिए शिवसेना का कट्टर हिंदुत्व छवि है।कांग्रेस अगर शिवसेना के साथ जाएगी तो उसे महाराष्ट्र में फायदा हो भी जाए लेकिन उसका नुकसान उसे देश भर में चुकाना पढ़ सकता है।शिवसेना को भी इस बात का पूरी इल्म है कि कांग्रेस के साथ जाना उसके लिए भी आत्मघाती साबित हो सकता है। इसलिए शिवसेना कांग्रेस के साथ इश्क का नाटक कर बीजेपी को जलाना चाहती है लेकिन बीजेपी को भी पता है की शिवसेना कांग्रेस से जितना भी इश्क लड़ा ले लेकिन रहेगी तो भाजपा के साथ ही।

बाल ठाकरे के भतीजेराज ठाकरे ने  11 साल पहले शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई ।शुरुआती दिनों में मनसे काफी मजबूती से आगे बढ़ी लेकिन समय के साथ एक के बाद एक खराब प्रदर्शन के चलते पार्टी के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो गए हैं।महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के आने का विरोध करती है।मनसे के कार्यकर्ताओं  ने कई अवसरों पर उत्तर प्रदेश और बिहार से महाराष्ट्र में काम करने आए  युवकों की पिटाई किया और इन राज्यों के लोगों के खिलाफ कथित नफरत भरे भाषण देने से भी पीछे नहीं रहे है। यही कारण है की मनसे अगर चाहे भी तो कांग्रेस बिहार-उत्तरप्रदेश में अपना नुकसान होने के डर से राज ठाकरे का हाथ नहीं थामेंगे।

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