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सामुदायिक रेडियो से बदल रही है महिलाओं की जिंदगी

राजधानी दिल्ली और गुड़गांव की चकाचौंध से दूर दिल्ली से मात्र 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरियाणा के नूंह जिले में महिलाओं की सोच और उनको आत्मनिर्भर बनाने में सूचना और नई-नई जानकारियों से लैस संचार का सबसे पुराना, सुलभ साधन सामुदायिक रेडियो अहम भूमिका निभा रहा है।

Community radio Alfaz-e-Mewat transforms attitudes पाठकों की तरफ से 

राजधानी दिल्ली और गुड़गांव की चकाचौंध से दूर दिल्ली से मात्र 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरियाणा के नूंह जिले में महिलाओं की सोच और उनको आत्मनिर्भर बनाने में सूचना और नई-नई जानकारियों से लैस संचार का सबसे पुराना, सुलभ साधन सामुदायिक रेडियो अहम भूमिका निभा रहा है।

आधुनिक समाज  महिला अधिकारों को लेकर काफी जागरूक है. इसका बड़ा कारण स्वयं महिलाएं हैं  जो अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हुई हैं  और उनकी जागरूकता को गति देने के लिए कई देशी-विदेशी गैर सरकारी तथा स्वयंसेवी संस्थान काम कर रहे हैं। लेकिन ग्रामीण स्तर पर इस बदलाव  का सबसे बड़ा  वाहक बन रहा है  सामुदायिक रेडियो ।  यही कारण है  कि सामुदायिक रेडियो के परिणामों से उत्साहित होकर सरकार इनकी संख्या  बढ़ाने पर जोर दे रही है  और सरकार दिसम्बर 2016 तक  519 सामुदायिक रेडियो को लाइसेंस प्रदान कर चुकी है और  सरकार का लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में इनकी संख्या 2500 तक करने की है। लेकिन इसके बावजूद 31 दिसम्बर 2016 तक केवल 201 सामुदायिक रेडियो स्टेशन ही सुचारु रूप से काम  कर रहे  हैं। वर्ष  2005 में सरकार  ने समुदायों को शिक्षित करने और मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य  से सामुदायिक रेडियो  की परिकल्पना  को मूर्तरूप देने के लिए दिशा-निर्देश तय किये थे और वर्ष  2006 से कुछ सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्थानों द्वारा सामुदायिक  रेडियो  स्थापित  किये गये थे लेकिन 10 वर्ष  के बाद भी अभी तक जिस गति से इनकी स्थापना तथा संचालन होना चाहिए था, वह नहीं हो पाया है. पिछले साल लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री श्री राज्यवर्धन सिंह रठौर ने बताया था कि पिछले तीन सालों में सरकार को सामुदायिक रेडियो स्थापित करने के लिए 747 आवेदन मिले हैं जिनमें से 62 को “लैटर ऑफ इंटेंट” जारी किये जा चुके हैं,  474 आवेदन विभिन्न कारणों से रद्द किये जा चुके हैं और  201 अभी विचाराधीन हैं.  सरकार को लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है।

राजधानी दिल्ली और गुड़गांव की चकाचौंध से दूर दिल्ली से मात्र 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरियाणा के नूंह जिले में महिलाओं की सोच और उनको आत्मनिर्भर बनाने में सूचना और नई-नई जानकारियों से लैस संचार का सबसे पुराना, सुलभ साधन सामुदायिक रेडियो अहम भूमिका निभा रहा है। बात सूचना की हो या विकास की,  शिक्षा की हो या चिकित्सा की,  शिकवा हो या शिकायत, सूचना के अधिकार की हो  या कानून की बात, किस्से कहानियों हो या हो मेव इतिहास की बात, साफ-सफाई की हो या सरकारी योजनाओं की पात्रता की बात, रोजगार की हो या पेंशन की हर सूचना को जन-जन तक पहुंचा रहा है। नूंह जिले के घाघस गांव स्थित इसके केन्द्र से आसपास के लगभग 210 गांवों में बदलाव की बयार बह रही है और इसका साफ असर इन गांवों में साफ नजर आता है. सबसे बड़ी बात यह है  कि जहां पहले लोग सरकार  की योजनाओं से अनभिज्ञ रह जाते थे और अपात्र लोग मिलीभगत करके सरकारी योजनाओं का लाभ उठा जाते थे,  अब ऐसा कतई नहीं है। लोग जहां अपने कर्तव्यों और अधिकारों को लेकर जागरूक हुए हैं वहीं सरकारी योजनाओं का लाभ अब केवल पात्र लोग ही ले पा रहे हैं।  रेडियो  कार्यक्रमों के जरिए लोगों में इतनी जागरूकता आ गई है कि यदि कोई गलत ढंग से सरकार की किसी योजना का लाभ उठा रहा हो तो यहां के लोग सूचना के अधिकार से जरिए पूरी जानकारी लेकर शिकायत करते हैं। वर्तमान दौर में नारी का चेहरा बदला है। नारी पूज्या नहीं समानता के स्तर पर व्यवहार चाहती है और उसको वह व्यवहार मिलना भी चाहिए। अगर आप ध्यान दें तो कुछ अद्भुत एवं असाधारण करने वाली महिलाएं तो हर काल में रही हैं। सीता से लेकर द्रौपदी, रज़िया सुल्तान से लेकर रानी दुर्गावति, रानी लक्ष्मीबाई से लेकर इंदिरा गांधी एवं किरण बेदी एवं सानिया मिर्ज़ा आदि ऐसे हजारों नाम हैं परन्तु महिलाओं की स्थिति में कितना परिवर्तन आया है और महिलाओं ने इस परिवर्तन को किस तरह से देखा है और अपने जीवन में उतारा है यह एक सोचने का विषय है?

कभी महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई से आरंभ हुआ यह महिला दिवस अब बहुत दूर तक चला आया है, पर एक  सवाल सदैव उठता है कि क्या महिलाएं आज हर क्षेत्र में बखूबी निर्णय ले रही हैं। क्या उनको वह साधन उपलब्ध हैं जिनसे वह अपने आपको बाहर की दुनिया से बांध सकें।

वैसे तो हम सभी जानते हैं कि महिलाओं को  सक्षम बनाने में उनका साथ देने के लिए काफी प्रयास शहरों और ग्रामीण स्तर पर हो रहे हैं परन्तु फिर भी कुछ अनकहे, अनदेखे पहलू हमारी दौड़ती भागती ज़िन्दगी से रूबरू हुए बिना ही रह जाते हैं,  जिसका एक उदहारण मैं इस लेख के माध्यम से आप सबके साथ साँझा करना चाहती हूँ।

राजधानी दिल्ली और गुड़गांव की चकाचौंध से दूर दिल्ली से मात्र 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरियाणा का नूंह जिले में महिलाओं की सोच और उनको आत्मनिर्भर बनाने में सूचना और नई-नई जानकारियों से लैस संचार का सबसे पुराना, सुलभ साधन सामुदायिक रेडियो अल्फाज़- ए- मेवात एफ फम 107.8 (एस एम सहगल फाउंडेशन की पहल) अहम भूमिका अदा कर रहा है। अगर हम नूंह जिले के गांवों की बात करें तो डिजिटल इंडिया के इस दौर में 10 प्रतिशत से कम घरों में टेलीविज़न हैं, ऐसे में महिलाऐं जो पढ़ना-लिखना नहीं जानती रेडियो सुनकर सारी जानकारियाँ पाती हैं।

पिछले 5 सालों से रेडियो अल्फाज़- ए- मेवात न केवल समुदाय की महिलाओं से जुड़ा है व समाज के हर वर्ग बच्चों, किशोरों ,किसानों, वृद्धों को विभिन्न रेडियो कार्यकमों के ज़रिये सूचना और जानकारी देकर आत्म- निर्भर बनाने में सहयोग कर रहा है ताकि वे अपने निर्णय खुद ले सकें और समाज में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें। रेडियो के मुख्य कार्यक्रम जो लोगों की ज़िन्दगी का हिस्सा बन गए हैं वो  हैं :- किसान भाइयों के लिए कृषि खबर, तोफहा–ऐ- कुदरत जल जंगल जमीन, ब महिलाओं को उनके स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी देने के लिए सेहत का पैगाम, मेवाती संस्कृति से रुबरु कराता है. कार्यक्रम सूफी सफ़र बच्चों को शिक्षा पर जानकारी देता है. कार्यक्रम रेडियो स्कूल और वक़्त हमारा है। किशोरों के भावनात्मक स्वास्थ्य से जड़ी रेडियो श्रृंखला कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें। रेडियो ने सफलतापूर्वक पांच साल का सफर पूरा कर लिया है। रेडियो अल्फाज़- ए -मेवात के पांच सालों के सफरनामें पर एक फिल्म भी बनाई गयी है जिसमें इलाके में प्रभाव को दर्शाया गया है तथा सामुदायिक रेडियो के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है।

पूजा मुरादा, निदेशक, संचार केंद्र, रेडियो अल्फाज-ए-मेवात और जो कम्युनिटी रेडियो ऐसोसिएशन की कोषाध्यक्ष भी हैं उनका कहना है कि पांच साल पहले 3 घंटे प्रतिदिन के प्रसारण से शुरू हुआ सामुदायिक रेडियो आज 12 घंटे प्रतिदिन प्रसारण कर रहा है. यह संभव हुआ है समुदाय के सहयोग और हमारे प्रयास से और आने वाले समय में भी हम अल्फाज़- ए -मेवात को और सुदृढ़ बनाने का प्रयास करते रहेंगे और समाज को मुख्यधारा से जोड़ने का हमारा प्रयास लगातार जारी रहेगा। आज यहां की महिलाएं और किशोरियां इतनी सशक्त हुई हैं कि रेडियो कार्यक्रमों की लाइव चर्चोओं में भाग लेती हैं, अपनी राय प्रकट करती हैं और साथ ही गाँव में कुछ महिला समूह ऐसे भी हैं जो  रेडियो कार्यक्रमों को बनाने में भी सहयोग देते हैं. आज इन महिलाओं की सोच में बदलाव आना शुरु हो गया है।

ज़रुरत है इस सोच को दिशा देने की ताकि इनके कदमों से हो इनकी पहचान…   ये एक अलग बात है कि न जाने ये लेख कितने पढ़ने वालों को प्रभावित करेगा, कितनों के नज़रिए में बदलाव लायेगा परन्तु ये इस बात की दस्तक ज़रूर है कि हमारे ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने अपने नज़रिए को समाज से अवगत करवाना शुरु कर दिया है।अब कदम उठाने की बारी है उनकी,  जो शहरों के आलीशान घरों के बंद दरवाजों के पीछे अपने सपने और अनकही बातों को सजोये बैंठी है। अब समय आ गया है कि अपने होने का एहसास  खुद हो। महिलाओं को खुद अपने निर्णयों का सम्मान करना चाहिए तभी हम समाज के हर तबके से अपने लिए सम्मान और समानता की अपेक्षा कर सकेगी।

अगर मैं अपनी बात को कुछ यू बांध दूं।

जिंदा रहते हैं वो लोग जिनमें हालात बदलने की हिम्मत होती है,  

फिर चाहें वह ख्यालों में जिंदा रहें या विचारों में…..

इस लेख को लिखने का मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि ख़यालों की बात है, ख़यालों में न रह जाये, सोचती हूं कि बांट लूं आपसे..कुछ ख़याल मेरे हैं. जो हो सकता है हों तेरे भी .. ।

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